
अगर आप अपने आस-पास किसी भी उम्र के व्यक्ति से अनौपचारिक रूप से बात करेंगे तो आपको पता चलेगा कि आज सोशल मीडिया की लत हमारे पूरे समाज को दीमक की तरह खा रही है। इसकी चपेट में खासकर मासूम बच्चे आ रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए न्यूनतम आयु सीमा लागू करने पर विचार कर रहा है। वहां 14 से 16 साल के बच्चों को भी सोशल मीडिया से दूर रखा जा सकता है।
इसका मकसद बच्चों को डिजिटल डिवाइस पर ज्यादा समय बिताने के बजाय खेल के मैदान से जोड़ना है। क्या भारत में भी ऐसा कदम नहीं उठाया जाना चाहिए? यह जानने के लिए रॉकेट साइंस पढ़ने की जरूरत नहीं है कि सोशल मीडिया ने हमारे ही देश में बच्चों को खेल के मैदानों और यहां तक कि उनके परिवार के सदस्यों और दोस्तों से भी दूर कर दिया है। अपने घर और आस-पास के बच्चों को देखिए।
वे फेसबुक, वॉट्सऐप, इंस्टा आदि से चिपके रहते हैं। आप देश के किसी भी शहर के किसी भी स्टेडियम में चले जाइए। आपको वहां बुजुर्ग लोग टहलते हुए मिल जाएंगे लेकिन बच्चे खेलते हुए बहुत कम मिलेंगे। हालांकि, करीब बीस साल पहले तक राजधानी दिल्ली से लेकर छोटे शहरों तक के सभी मैदानों पर बच्चे खेलते नजर आते थे। राजधानी के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, तालकटोरा स्टेडियम, नेशनल स्टेडियम और अन्य मैदानों में अभ्यास करते समय बच्चे खूब पसीना बहाते थे। वे अपने कोच की देखरेख में अभ्यास करते थे।
लेकिन पिछले कुछ सालों में बच्चों की हालत देखिए। अगर बच्चे नहीं खेलेंगे तो देश को ओलंपिक, एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेलों में पदक कैसे मिलेंगे? क्या कोई हमें मुफ्त में पदक दिलाएगा? चीन में भी नाबालिगों द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक कानूनी तौर पर रोक लगा दी गई है। यह सच है कि आज के समय में सोशल मीडिया हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है।
लेकिन, इसका अंधाधुंध इस्तेमाल, खासकर बच्चों के लिए, बहुत खतरनाक साबित हो रहा है। सोशल मीडिया की वजह से बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, साइबर बुलिंग, ऑनलाइन शोषण और कई तरह की लत का शिकार हो रहे हैं। इसलिए बच्चों को इन दुष्प्रभावों से बचाना हमारी अहम जिम्मेदारी बन गई है। बच्चों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे। उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की आयु सीमा का पालन किया जाना चाहिए और बच्चों को उचित आयु तक इन प्लेटफॉर्म का उपयोग करने से रोका जाना चाहिए। बच्चों को उचित आयु सीमा वाले विशेष ऐप और वेबसाइट का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना भी महत्वपूर्ण है।
मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि माता-पिता और स्कूल के शिक्षकों को बच्चों के साथ सोशल मीडिया के बारे में नियमित और खुली चर्चा करनी चाहिए। उन्हें इसके फायदे और नुकसान दोनों के बारे में बताना चाहिए। हमें बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों के बारे में भी लगातार प्यार से पूछना चाहिए। खेल के अलावा उन्हें संगीत, नृत्य या किसी अन्य मनोरंजक गतिविधियों से जोड़ा जा सकता है। नोएडा में भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व खिलाड़ी अनादि बरुआ बच्चों को फुटबॉल की कोचिंग देते हैं। इसी तरह, दक्षिण दिल्ली में प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी और बैडमिंटन रेफरी तुलसी दुरेजा बच्चों को बैडमिंटन के गुर सिखाते हैं। अनादि बरुआ और तुलसी दुरेजा जैसे पूर्व खिलाड़ी देश के सभी छोटे-बड़े शहरों में कोचिंग दे रहे हैं। वे बहुत मामूली फीस लेते हैं। माता-पिता को अपने बच्चों को ऐसे प्रसिद्ध खिलाड़ियों को देखने के लिए ले जाना चाहिए। जाहिर है, जब बच्चे खेलेंगे तो उनके पास सोशल मीडिया के लिए समय नहीं होगा।
बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना मुश्किल काम हो सकता है, लेकिन उनके कल्याण के लिए यह जरूरी है। मेरा मानना है कि अगर परिवार के सदस्य पहले की तरह एक साथ बैठकर खाना, खेलना और बातें करना शुरू करें तो सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखी जा सकती है।
याद कीजिए वो समय जब पूरा परिवार सुबह-शाम परिवार के मुखिया के साथ बैठकर खाना खाता था। अब कितने ही परिवारों में सब एक साथ खाना खाते हैं। अब तो परिवार के हर सदस्य के लिए अलग-अलग तरह का खाना भी बन रहा है। यानी घर अब होटल बन गया है। जैसे होटल के अलग-अलग कमरों में रहने वाले लोग रूम सर्विस से अपना मनपसंद खाना ऑर्डर करते हैं, वैसा ही अब घरों में भी हो रहा है! क्या पहले ऐसा होता था? ये भारतीय मूल्य नहीं थे।
यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि बच्चे अपने माता-पिता के व्यवहार से सीखते हैं। अगर आप खुद भी सोशल मीडिया का लगातार इस्तेमाल करेंगे तो बच्चों के लिए इसके इस्तेमाल को सीमित करना मुश्किल होगा। माता-पिता और बच्चों के अभिभावकों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर अपने व्यवहार से एक अच्छा उदाहरण पेश करने की कोशिश करनी चाहिए।
अब तो घर के बड़े सदस्य भी अपनी तस्वीरें फेसबुक या इंस्टा पर पोस्ट कर रहे हैं। उसके बाद कई उत्साही लोग अपने दोस्तों को भी फोन करके उनके पोस्ट को लाइक या कमेंट करने के लिए कहते हैं। जब माता-पिता खुद ही दिन-रात सोशल मीडिया को समय देने लगे हैं तो वे अपने बच्चों को इससे कैसे दूर रख पाएंगे। उन्हें इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा। आप अपने परिवार के सदस्यों को डाइनिंग रूम या बेडरूम में सोशल मीडिया से जुड़ने से रोक सकते हैं। आप अपने बच्चों से इस बारे में बात कर सकते हैं कि सोशल मीडिया को ज्यादा समय देना क्यों सही नहीं है। उन्हें साइबरबुलिंग के बारे में बताएं। अब ये भी जान लीजिए कि साइबरबुलिंग क्या होती है।