
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर, आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर युवाओं को लुभाने का प्रयास किया है। उन्होंने अगले पांच वर्षों में रोजगार के लिए बड़े दावे किए हैं। लेकिन क्या ये दावे असलियत में धरातल पर उतरने वाले हैं, या फिर ये भी केवल एक राजनीतिक पैंतरा हैं?
रोजगार का झूठा दावा
केजरीवाल ने अपनी हालिया घोषणा में कहा है कि वह सरकार बनने पर युवाओं के लिए रोजगार और नौकरी पैदा करने को अपनी प्राथमिकता बनाएंगे। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान उनकी सरकार ने 12 लाख बच्चों के लिए रोजगार का इंतजाम किया था। लेकिन क्या ये आंकड़े केवल एक सांकेतिक संख्या हैं? आम आदमी पार्टी का रिकॉर्ड यह बताता है कि वे अपने पिछले वादों को पूरा करने में असफल रहे हैं। दक्षिण दिल्ली से भाजपा सांसद रामवीर सिंह बिधूड़ी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि केजरीवाल ने 2022 में 20 लाख नौकरियों का वादा किया था, लेकिन हकीकत में सिर्फ 20 नौकरियों का भी आंकड़ा नहीं मिल पाया। यह सवाल उठता है कि क्या केजरीवाल का यह नया वादा भी मात्र एक दिखावा है?
बेरोजगारी की समस्या बनी हुई है
किस तरह से केजरीवाल यह दावा करते हैं कि उन्होंने युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार पैदा किया है, जबकि सच्चाई यह है कि दिल्ली में लाखों युवा आज भी बेरोजगार हैं। केजरीवाल ने स्वीकार किया है कि पढ़ाई के बाद युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं, और कुछ गलत संगत में पड़कर अपराध की राह अपना रहे हैं। यह स्वीकार करना कि उन्होंने इस समस्या को हल नहीं किया, उनकी नाकामी को दर्शाता है।
शिक्षा और स्वास्थ्य में भी मानवाधिकारों का हनन
केजरीवाल के शासन के दौरान शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भी कमी आई है। उनकी सरकार ने लगातार स्कूलों की स्थिति को सुधारने का वादा किया, लेकिन आज भी अनेक सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। उनके द्वारा किए गए दावों में वास्तविकता की कमी साफ नजर आती है, जिससे दिल्ली के युवाओं में निराशा बढ़ रही है।
चुनावी वादों की हकीकत
केजरीवाल की यह हरकत केवल चुनावी पैंतरा प्रतीत होती है। उन्हें पहले भी अपने वादों को लेकर घेराबंदी का सामना करना पड़ा है। उनके वादों का घड़ा अब भर चुका है, जैसा कि भाजपा सांसद बिधूड़ी ने कहा है। जनता अब समझ चुकी है कि केजरीवाल के वादे केवल खोखली बातें हैं, जिनका असल में कोई मूल्य नहीं।
आम आदमी पार्टी ने युवाओं के प्रति जो वादे किए हैं, वे वास्तविकता से दूर और जानबूझकर भटकाव हैं। चुनावी समय में केवल भाषण देना और वादे करना आसान है, लेकिन इसका पालन करना एक बड़ी चुनौती है। युवाओं को चाहिए कि वे समझें कि एक बार फिर से उन्हें ठगा नहीं जाना चाहिए। इस चुनाव में उन्हें मतदान करते समय सचेत रहना होगा।