
Rajiv Gandhi assassination case: देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल किया है. कोर्ट ने केंद्र से पूछते हुए कहा है कि 36 साल की सजा काट चुके एजी पेरारिवलन को रिहा क्यों नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि जब जेल में कम अवधि की सजा काटने वाले लोग रिहा हो रहे हैं तो केंद्र पेरारिवलन को रिहा करने के लिए सहमत क्यों नहीं हो सकता.
गौरतलब है कि 21 मई, 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान तमिलनाडु में एक आत्मघाती हमले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी थी. मामले में पेरारिवलन सहित सात लोगों को दोषी पाया गया था. इसके बाद टाडा अदालत और सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन को मौत की सजा सुनाई थी. बाद में दया याचिका के निपटारे में देरी के आधार पर पेरारिवलन की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने बाकी छह दोषियों को रिहा करने का ओदश दिया है.
राजीव गांधी हत्याकांड में नलिनी, रविचंद्रन, मुरुगन, संथान, जयकुमार और रॉबर्ट पोयस को रिहा करने का आदेश दिया गया है. इस मामले में पेरारीवलन पहले ही रिहा हो चुके हैं.
तमिलनाडु सरकार ने शीर्ष अदालत को दो अलग-अलग एफिडेबिट्स में यह बताया कि 9 सितंबर, 2018 को हुई कैबिनेट मीटिंग में राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों की दया याचिकाओं पर विचार किया गया था. कैबिनेट ने राज्यपाल को पूर्व पीएम राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के हत्यारों के जीवन की छूट के लिए सिफारिश की थी. संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत सरकार ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सिफारिश गवर्नर से की थी. संविधान के अनुच्छेद 161 के अनुसार कैबिनेट का निर्णय अंतिम है और इसके अनुसार राज्यपाल कैबिनेट की सलाह को मानेंगे. दरसअल,नलिनी, संथान, मुरुगन, एजी पेरारिवलन, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन आजीवन कारावास की सजा पिछले 23 सालों से जेल में काट रहे हैं.
नलिनी व रविचंद्रन पैरोल पर बाहर
नलिनी और रविचंद्रन दोनों पैरोल पर करीब एक साल से बाहर ही हैं. तमिलनाडु सरकार ने तमिलनाडु सस्पेंडेशन ऑफ सेंटेंस रूल्स 1982 के तहत दोनों के पैरोल को 27 दिसंबर 2021 को मंजूर कर लिया था. नलिनी वेल्लोर की स्पेशल जेल में 30 साल से अधिक समय से सजा काट रही है. जबकि रविचंदद्रन मदुरै सेंट्रल जेल में 37 साल की सजा काट चुका है.
तमिलनाडु सरकार से रिहाई के बाद भी रोके रखा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने पीएम राजीव गांधी की हत्या में दोषी पाए गए पेरारिवलन की दया याचिका के निपटारे में ज्यादा समय लिया है. पेरारिवलन ने अपनी याचिका में कोर्ट से कहा था कि, तमिलनाडु सरकार ने उसे रिहा करने का फैसला लिया, लेकिन राज्यपाल ने फ़ाइल को काफी समय तक अपने पास रोके रखा और बाद में राष्ट्रपति के पास भेज दिया. ऐसा करना संविधान विरुद्ध है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पेरारिवलन की ओर से दायर याचिका पर एएसजी, तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और लिखित दलीलें दो दिनों में दाखिल करने को कहा गया था गौरतलब है कि, इससे पहले 11 मई को हुई सुनवाई में केंद्र ने पेरारिवलन की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजने के राज्यपाल के फैसले का सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया था. केन्द्र की ओर बचाव करते हुए कहा गया था कि, केंद्रीय कानून के तहत दोषी ठहराए गए शख्स की सजा में छूट, माफी और दया याचिका के संबंध में याचिका पर केवल राष्ट्रपति ही फैसला कर सकते हैं. ऐसे में बेंच ने केंद्र जवाब मांगा था कि, अगर इस दलील को स्वीकार कर लिया जाता है तो राज्यपालों की ओर से दी गई अब तक की छूट अमान्य हो जाएगी.