रायपुर : करीब 50 साल पहले होल्डाल और सूटकेस लेकर रायपुर पहुंचे शशि वरवंडकर, जो एक प्रसिद्ध समाजसेवी, उद्यमी, योग प्रशिक्षक और रंगकर्मी हैं, ने अपनी पुस्तक ‘द्वार दीप’ का विमोचन एक विशेष समारोह में किया। इस मौके पर कई प्रमुख हस्तियों ने उनकी किताब की सराहना की। अपने संबोधन में वरवंडकर ने ईमानदारी से कहा कि ‘द्वार दीप’ उनकी आत्मकथा नहीं है, क्योंकि आत्मकथा लिखने के लिए जो आत्मबल चाहिए, वह उनके पास नहीं है।
वरवंडकर ने अपने जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि दिव्यांग बच्चों के साथ बिताए गए समय ने उन्हें इंसान बनाया। उन्होंने अपनी किताब को अपनी बहन राजश्री अमृते की मेंटली चैलेंज्ड बेटी, वर्षा के नाम समर्पित किया। इसके अलावा, वरवंडकर ने अपने समाजसेवी कार्यों का भी उल्लेख किया, जिनमें दिव्यांग बालिका विकास गृह में किए गए उनके प्रयास शामिल हैं।
कार्यक्रम के दौरान, वरवंडकर ने महाराष्ट्र मंडल के अध्यक्ष अजय काले और उनकी टीम का विशेष धन्यवाद किया, जिन्होंने उनकी मां स्व. कुमुद वरवंडकर की स्मृति में नए रंगमंच का नाम रखने पर सहमति दी। उन्होंने नाटक ‘मैं अनिकेत हूं’ को फिर से मंचित करने की अपनी इच्छा भी जाहिर की। शशि वरवंडकर ने यह भी घोषणा की कि ‘द्वार दीप’ से होने वाली आय को दिव्यांग बच्चों के कल्याण के लिए समर्पित किया जाएगा।
इस समारोह में शशि वरवंडकर के 50 वर्षों के अनुभवों पर कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने अपने विचार साझा किए, जिनमें वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज, शिक्षाविद डॉ. चितरंजन कर, सीए रामदास जोगलेकर और अन्य शामिल थे। कार्यक्रम में शशि की बहन राजश्री अमृते और उनकी मेंटली चैलेंज्ड बेटी वर्षा अमृते को मंच पर सम्मानित किया गया। शशि के साथ उनकी पत्नी डॉ. शिल्पा वरवंडकर, चाचा अरविंद वरवंडकर और अन्य परिवार सदस्य भी मंच पर उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. वर्षा वरवंडकर और शुभदा वरवंडकर ने किया।