नई दिल्ली : फिल्म ‘अजमेर-92’ रिलीज से पहले ही विवाद के घेरे में आ चुकी है। ‘द केरला स्टोरी’ के बाद अब एक और अपकमिंग फिल्म फिल्म ‘अजमेर-92’ अब विवादों में फस्ती दिखाई दे रही है। कथित तौर पर ये फिल्म माइनोरिटी अल्पसंख्यक समुदाय को टारगेट करती है और 30 साल पहले अजमेर में टीनएज लड़कियों पर हुए आपराधिक हमले पर बेस्ड है। ‘अजमेर 92’ को समाज में दरार पैदा करने का प्रयास बताते हुए जमीयत उऐमा-ए-हिंद ने इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
समाज को विभाजित करने के खोजे जा रहे हैं बहाने
मौलाना मदनी ने कहा कि वर्तमान समय में समाज को विभाजित के बहाने खोजे जा रहे हैं और आपराधिक घटनाओं को धर्म से जोड़ने के लिए फिल्मों एवं इंटरनेट मीडिया का सहारा लिया जा रहा है, जो निश्चित रूप से निराशाजनक है और हमारी साझी विरासत के लिए गंभीर रूप से हानिकारक है।
क्या है फिल्म में
करीब 30 साल पहले ख्वाजा नगरी अजमेर में घटी एक घटना ने देश को दंग कर दिया था। जब 100 से भी ज्यादा लड़कियों की ना सिर्फ न्यूड फोटोज निकाली गई थीं, बल्कि उनके साथ दुष्कर्म भी किया गया। जिसके बाद कई लड़कियों ने अपनी जान तक दे दी, इनमें देश के कई नामचीन रसूखदारों की बेटियां भी शामिल थी।इसके तार अजमेर शरीफ के खादिम परिवार से जुड़ा हुआ था। इस यौन शोषण का सारा खेल शहर के सबसे रईस और ताकतवर खानदानों में से एक चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती और नफीस चिश्ती ने अपने साथियों के साथ मिल कर अंजाम दिया था।इतना ही नहीं, बल्कि फारूक और नफीस यूथ कांग्रेस से भी जुड़े थे। इनके पास ना सिर्फ सियासी ताकत थी बल्कि धार्मिक पावर भी थी। इस स्कैंडल में कुल 18 आरोपी घेरे में आए, जिसमें फोटो लैब का मालिक भी शामिल था।