नई दिल्ली. पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर सरकार बनाने वाले नरेंद्र मोदी देश के दूसरे प्रधानमंत्री हो गए हैं. भारतीय राजनीति में छह दशक के बाद उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है. हालांकि, अब कहा जा रहा है कि दस साल बहुमत की सरकार चला चुके प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह पांच साल चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं क्योंकि एक तरफ घटक दलों का दबाव रहेगा तो दूसरी तरफ मजबूत और आक्रामक हो चुका विपक्ष राह में रोड़े अटकाएगा. सवाल उठ रहे हैं कि क्या मोदी इन चुनौतियों का मुकाबला कर पाएंगे?
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि मोदी एक असाधारण नेता हैं. जो चुनौतियां दिख रही हैं, उनका मुकाबला करने में वह सक्षम हैं. इसके पीछे कई वजह हैं. नई एनडीए सरकार की तुलना पूर्व में बनी एनडीए सरकारों खासकर 1999 में बनी और पांच साल चली वाजपेयी सरकार से नहीं की जा सकती. अंकों का काफी फर्क है. वाजपेयी ने अपने 182 सांसदों को लेकर सरकार चलाई थी लेकिन मोदी के साथ कहीं बेहतर संख्याबल है. 240 की संख्या बहुमत से दूर तो है लेकिन 182 की भांति ‘बहुत दूर’ नहीं है.
कमजोर गठबंधन सरकारों का दौर भारत में कमजोर गठबंधन सरकारों के दौर की बात करें तो यह 1989 में जनता दल की सरकार से शुरू हो गया था, जब बीपी सिंह ने 143 सीटों पर सरकार बना डाली. भाजपा ने 1996 में 161 और 1998 में 182 के अंकों के साथ सरकार बनाई लेकिन ये चल नहीं पाई. हालांकि, 1999 में पुन जब भाजपा को 182 का ही जनादेश मिला तो उन्होंने सरकार बनाई भी और पांच साल चलाई भी. हालांकि, इसे कमजोर सरकार माना गया. विशेषज्ञ नई एनडीए सरकार की तुलना 1991 में बनी नरसिंह राव सरकार से करते हैं. तब उनके पास 244 सांसद थे. मोदी के पास 240 हैं. कभी नहीं लगा कि राव की सरकार घटक दलों के दबाव में काम कर रही है. बड़े आर्थिक फैसले उन्हीं की सरकार के दौरान लिए गए. यह फिर क्यों नहीं हो सकता?
मोदी का बड़ा कद
पहले की गठबंधन सरकारों की तुलना में दो और बातें महत्वपूर्ण हैं. एक प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक कद बहुत बड़ा हो चुका है. लगातार तीसरी बार अपनी सरकार बनाने वाले वे नेहरू के बाद पहले प्रधानमंत्री हैं. इसलिए घटक दलों को यह कई बार सोचना होगा कि वह कैसे पेश आएं. यह भी महत्वपूर्ण है कि नायडू और नीतीश के पास भी विकल्प सीमित हैं.
राजनीतिक विश्लेषक और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुधीर सिंह कहते हैं कि चुनौती जरूर है, क्योंकि गठबंधन सरकार के साथ-साथ विपक्ष भी मजबूत हो चुका है. लेकिन मोदी इन चुनौतियों से अनजान नहीं हैं. घटक दलों को साधने के लिए एक साझा कार्यक्रम बनाकर वह एक दमदार सरकार चला सकते हैं. ‘एक देश एक चुनाव’ पर मोदी पहले ही कह चुके हैं कि इस पर आम राय बनाने का प्रयास करेंगे.