चंडीगढ़: विजिलेंस ब्यूरो के द्वारा करोड़ों रुपये के अमरूद बाग मुआवजा वितरण घोटाले के मामले में सह आरोपित नायब तहसीलदार जसकरण सिंह बराड़ को गिरफ्तार कर लिया गया है।बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट से जमानत याचिका खारिज होने के पश्चात आरोपित ने ब्यूरो के सामने अपना सरेंडर किया।
मुआवजा वितरण घोटाले वाले मामले में जसकरण सिंह बराड़ की भूमिका सामने आई थी, जिसके बाद उन्हें इसपर आरोपित के रूप में नामजद किया गया था। जांच में पता चला कि जसकरण सिंह बराड़ और इस मामले के मुख्य आरोपित के बीच फर्जी लाभार्थियों को मुआवजा जारी करने में बड़ी साठगांठ थी।
भूमि मालिकों के नाम नहीं खाए मेल
साथ ही भुगतान जारी करने से पहले रिकॉर्ड में यह बात पता चली की कुछ भूमि मालिकों के नाम और उनकी हिस्सेदारी रिकॉर्ड से मेल नहीं खा रहे थे।कुछ नाम को तो बिना किसी आधार के गलत तरह से लाभार्थियों की सूची में शामिल कर दिए गए थे, क्योंकि भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 11 के तहत उन्होंने अधिसूचना जारी होने के बाद भूमि खरीदी थी।
उक्त नायब तहसीलदार के द्वारा खसरा गिरदावरी रिकॉर्ड, जिसमें थोड़ी बहुत छेड़छाड़ की गई थी, उसे नजरअंदाज करते हुए विवरण वाली फाइल को एक ही दिन में तीन बार निपटाकर भुगतान की सिफारिश करने में अनावश्यक जल्दबाजी दिखाई थी।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेशों के तहत बराड़ को 11/12/2023 को जांच में पहुंचने के निर्देशों के साथ ही अंतरिम राहत मिल गई थी। जिसके बाद तो वह जांच में शामिल जरूर हुए, लेकिन ब्यूरो का उन्होंने कोई सहयोग नहीं किया।
अग्रिम जमानत हुई खारिज
इसी के कारण से विजिलेंस ब्यूरो ने उच्च न्यायालय में उनकी जमानत याचिका का कड़ा विरोध जताया और आखिर में उनकी याचिका और जवाब के खिलाफ 2 हलफनामे दाखिल कर दिए गए। कई सुनवाइयां हुई और विस्तृत तर्कों के बाद, हाईकोर्ट की ओर से 20/03/2024 को 25 पन्नों के आदेश के साथ ही उनकी अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया।
इसके बाद से लगातार जसकरण सिंह बराड़ फरार रहे और सुप्रीम कोर्ट में अपनी जमानत के लिए विशेष याचिका दायर कर दी।लेकिन करोड़ों के घोटाले में आरोपी की भूमिका और कानून प्रक्रिया से बचने के लिए उनके गलत आचरण को पूरी तरह सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।