नीतीश कुमार ने तमाम राजनीतिक पंडितों को एक बार फिर गलत साबित कर दिया है. एग्जिट पोल का अनुमान हो या फिर तमाम राजनीतिक पंडितों का बयान, वो नीतीश कुमार के लिए गलत ही साबित हुआ है. नीतीश एनडीए में बने रहेंगे या फिर से पाला बदलकर केंद्र सरकार में बड़ी भूमिका में दिखेंगे? शरद पवार द्वारा मिलने वाला आमंत्रण सियासी गलियारों में कौतुहल का विषय बना हुआ है.
नीतीश कुमार ने तमाम राजनीतिक पंडितों को एक बार फिर गलत साबित कर दिया है. एग्जिट पोल का अनुमान हो या फिर तमाम राजनीतिक पंडितों का बयान, वो नीतीश कुमार के लिए गलत ही साबित हुआ है. ऐसे में 16 में से 15 सीटों पर लगभग जीत चुके नीतीश कुमार का कद केंद्र की राजनीति में परिणाम के बाद छलांग लगा चुका है. यही वजह है कि आरजेडी के मनोज झा हों या एनसीपी के शरद पवार, दोनों नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन के पाले में लाने के लिए अलग-अलग तरीके का ऑफर देना शुरू कर चुके हैं. जाहिर है पिछले 15 साल से बिहार की सत्ता के सिरमौर रहे नीतीश का कद इस कदर बढ़ गया है कि केंद्र सरकार का रिमोट अब उनके हाथों में रहने वाला है, ये तय माना जा रहा है.
हारी बाजी पलटकर बाजीगर क्यों दिख रहे हैं नीतीश?
लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी 4 से 5 सीटों पर सिमट जाएगी, ऐसा बयान देकर प्रशांत किशोर खासे चर्चा में आए थे. कहा जाने लगा था कि बार-बार पाला बदलकर नीतीश अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं लेकिन लोकसभा चुनाव का परिणाम उन्हें बड़े बाजीगर के तौर पदस्थापित कर रहा है. नीतीश के फैसले शुरुआती तौर पर भले ही गलत दिखते हों लेकिन अंततोगत्वा नीतीश विनर के तौर पर बाहर निकलते हैं, ये नीतीश ने फिर साबित किया है.
एग्जिट पोल में भी बिहार में होने वाले नुकसान के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था. राजनीतिक पंडित जेडीयू की वजह से एनडीए को नुकसान होता देख रहे थे लेकिन चुनावी परिणाम में किशनगंज सीट पर कांग्रेस आगे चल रही है. साल 2019 में एकमात्र सीट किशनगंज से कांग्रेस पार्टी की जीत हुई थी. वैसे जेडीयू जहानाबाद गंवाती हुई दिख रही है लेकिन 16 में से 15 सीटों पर जेडीयू की जीत को बेहतरीन स्ट्राइक रेट माना जा रहा है.
लोग अब नीतीश की असली ताकत का लोहा मानने लगे हैं
इसलिए नीतीश कुमार को राजनीतिक अवसान की ओर बढ़ने को लेकर ताना मारने वाले लोग अब नीतीश की असली ताकत का लोहा मानने लगे हैं. नीतीश की पार्टी के एक बड़े मंत्री मदन साहनी ने नीतीश के बड़े क्रिटिक को ये कहते हुए जवाब दिया है कि बिहार में नीतीश की वजह से यूपी की कहानी नहीं दोहरा सकी वरना बिहार भी यूपी की तरह एनडीए की करारी हार से बच नहीं पाता. बार-बार बुरे वक्तों में फंसने के बावजूद नीतीश ताकतवर बनकर कैसे निकलते हैं?
साल 2020 में नीतीश कुमार की पार्टी को महज 43 सीटें मिली थीं. उसके बाद से लगातार नीतीश कुमार की ताकत को कम आंका जाने लगा था. कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार के इधर-उधर जाने की वजह से उनकी विश्वसनीयता में खासी गिरावट आई है लेकिन जनता की अदालत में नीतीश कुमार एक बार फिर ताकतवर नेता के रूप में उभरे हैं, इससे अब कोई इनकार नहीं कर सकता है.