सुप्रीम कोर्ट में वोटिंग से जुड़े एक अहम मुद्दे पर आज सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इसमें किसी भी प्रत्याशी से ज्यादा वोट NOTA को मिलने पर दोबारा चुनाव की मांग पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा है. शिव खेड़ा की ओर से दाखिल इस याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की.
यह जनहित याचिका मोटिवेशनल स्पीकर और लेखक शिव खेड़ा की ओर से दाखिल की गई है. खेड़ा की ओर से पेश अर्जी पर बहस करते हुए वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि यह एक अहम मसला है, जिस पर विचार करना जरूरी है. उन्होंने सूरत लोकसभा सीट पर भाजपा कैंडिडेट के निर्विरोध जीतने का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां वह मैदान में अकेले ही बचे थे. वकील ने कहा कि हमने देखा कि सूरत में कोई कैंडिडेट ही नहीं बचा. सारे वोट एक ही उम्मीदवार को जाने थे. इस अर्जी में कहा गया कि चुनाव आयोग को NOTA को भी एक चुनावी उम्मीदवार घोषित करना चाहिए.
फिलहाल ये व्यवस्था है कि प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले को विजेता माना जाता है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इसी व्यवस्था के चलते सूरत से एक प्रत्याशी को निर्विरोध निर्वाचित किया गया है. हालांकि यह विस्तृत सुनवाई का विषय है. इस याचिका का असर सूरत सीट के नतीजे या मौजूदा लोकसभा चुनाव के किसी भी पहलू पर नहीं पड़ेगा.
याचिकाकर्ता ने रखी हैं ये मांगें
शिव खेड़ा की ओर से दायर इस याचिका में यह नियम बनाने की भी मांग की गई है कि NOTA से कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को 5 साल के लिए किसी भी तरह के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए. इसके अलावा NOTA को एक काल्पनिक उम्मीदवार के तौर पर देखा जाए. मामले की सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच कर रही है.
NOTA क्या है
भारत में NOTA का विकल्प 2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आया था. नन ऑफ द अबव यानी NOTA एक वोटिंग ऑप्शन है, जिसके तहत मतदाता किसी भी प्रत्याशी के पसंद न आने पर इस विकल्प को चुन सकता है. इसे भारत में शुरू कराने के पीछे पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने काफी लंबी लड़ाई लड़ी थी. यहां यह समझना जरूरी है कि भारत में नोटा राइट टु रिजेक्ट के लिए नहीं है. मौजूदा कानून के मुताबिक NOTA को ज्यादा वोट मिलते हैं तो इसका कोई कानूनी नतीजा नहीं होता है. ऐसी स्थिति में अगले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाएगा.