प्रयागराज . ज्ञानवापी परिसर का एएसआई से वैज्ञानिक सर्वे कराने के वाराणसी जिला अदालत के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल याचिका पर बुधवार को भी सुनवाई हुई. कोर्ट ने सर्वे के लिए एएसआई द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वैज्ञानिक तकनीक के बारे में गहनता से पड़ताल की. कोर्ट ने जानना चाहा कि सर्वे कैसे होगा. दो चरणों में लगभग साढ़े चार घंटे तक चली सुनवाई पूरी न हो पाने के कारण कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई जारी रखने को कहा है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सर्वे पर रोक लागू रहेगी.
मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर के समक्ष बुधवार सुबह 932 बजे सुनवाई शुरू हुई. सबसे पहले इंतजामिया कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फरमान नकवी ने अपना पक्ष रखा. वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि मंदिर पक्ष ढांचे की खुदाई कराना चाहता है, जिससे पुराना ढांचा गिर सकता है. उनका यह भी कहना था कि जब कोर्ट कमीशन जारी कर चुका है और कमीशन की रिपोर्ट पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है तो नए सिरे से उसी स्थल की खुदाई का आदेश जारी करने का कोई औचित्य नहीं था.
मस्जिद पक्ष के वकील ने आशंका जताई कि वैज्ञानिक सर्वे से ढांचे को गंभीर क्षति पहुंच सकती है. उनकी यह भी दलील थी कि इसी मामले को लेकर दाखिल एक अन्य याचिका पर हाईकोर्ट ने वैज्ञानिक सर्वे के मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रखा हुआ है. इस स्थिति में भी जिला अदालत द्वारा वैज्ञानिक सर्वे का आदेश देने का औचित्य नहीं है.
सुनवाई के दौरान शाम करीब 507 बजे अचानक मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने हलफनामे में अपनी बात बता रहे एएसआई के एडिशनल डायरेक्टर आलोक त्रिपाठी को रोककर टोका, टाइम ओवर हो गया, ऐसा तो नहीं कि आपकी टीम सर्वे शुरू कर दे (सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार शाम पांच बजे तक रोक लगाई थी). त्रिपाठी ने बताया, ऐसा कुछ नहीं होगा. अदालत ने मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रखने का निर्देश दिया.
एएसआई ने जीपीएस सर्वे का तरीका बताया
एएसआई की ओर से एडिशनल डायरेक्टर जनरल आलोक त्रिपाठी उपस्थित हुए. कोर्ट ने उनसे पूछा कि अब तक सर्वे का कितना काम पूरा हुआ है, इस पर उन्होंने बताया कि पांच प्रतिशत काम हो चुका है. कोर्ट ने जानना चाहा कि आप सर्वे का काम कब तक पूरा कर लेंगे. आलोक त्रिपाठी ने बताया कि 31 जुलाई तक सर्वे का काम पूरा कर लिया जाएगा. उन्होंने कोर्ट को बारीकी से जीपीएस सर्वे की तकनीक के बारे में बताया. जीपीएस तकनीक रडार के माध्यम से जमीन के नीचे से सैंपल एकत्र करती है. जीपीएस से स्थान की लंबाई-चौड़ाई का पता चलता है. इस तकनीक से स्ट्रक्चर को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है.