Delhi News: आम आदमी पार्टी (AAP) की ‘महिला अदालत’ का आयोजन आज दिल्ली में किया जा रहा है। हालांकि, इस पहल को लेकर पार्टी पर सवाल उठ रहे हैं कि यह महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए गंभीर प्रयास है या सिर्फ चुनावी जुमला?
चुनावी गणित के लिए महिलाओं का इस्तेमाल?
AAP की ‘महिला अदालत’ का असली मकसद महिलाओं की समस्याओं को हल करना नहीं, बल्कि उन्हें चुनावी वादों से लुभाना लगता है। पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री आतिशी इस अदालत में महिलाओं के हितैषी बनने की कोशिश करेंगे, लेकिन बीते सालों में महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था के सुधार पर AAP का रिकॉर्ड निराशाजनक रहा है।
‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ या खोखला वादा?
‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ के तहत महिलाओं को हर महीने ₹1000 देने का ऐलान किया गया है, जिसे भविष्य में ₹2100 तक बढ़ाने का वादा है। यह योजना सुनने में आकर्षक लग सकती है, लेकिन दिल्ली के बजट की वास्तविक स्थिति और पहले से लागू योजनाओं की खराब स्थिति इसे केवल चुनावी स्टंट साबित करती है।
महिला सुरक्षा पर नाकामी
AAP ने दिल्ली में महिला सुरक्षा को लेकर भाजपा पर आरोप लगाए, लेकिन खुद अपनी सरकार के तहत यह सुनिश्चित करने में नाकाम रही कि महिलाएं सुरक्षित महसूस करें। महिलाओं के खिलाफ अपराध की बढ़ती घटनाएं और इन मामलों में कोई ठोस कार्रवाई न होने से पार्टी की मंशा पर सवाल उठते हैं।
गृह मंत्री पर आरोप, लेकिन समाधान कहां?
गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर दिल्ली में अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशी प्रवासियों को लेकर चिंता जाहिर करना AAP के लिए राजनीतिक हथकंडा लगता है। अगर ये मुद्दे वाकई गंभीर हैं, तो बीते वर्षों में AAP सरकार ने इसे हल करने के लिए क्या कदम उठाए?
महिला अदालत: असल समस्या की ओर ध्यान नहीं
दिल्ली में महिलाओं की असली समस्याएं रोजगार, स्वास्थ्य, और शिक्षा से जुड़ी हैं। AAP की ‘महिला अदालत’ इन गंभीर मुद्दों पर कोई ठोस समाधान देने के बजाय सिर्फ BJP को निशाना बनाने और महिलाओं को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने की कोशिश करती नजर आ रही है।
महिलाओं को लुभाने की रणनीति?
‘महिला अदालत’ और योजनाओं की घोषणा से साफ है कि AAP का असली फोकस महिलाओं के लिए काम करने से ज्यादा उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करना है। यह महिलाओं की समस्याओं का समाधान करने से ज्यादा राजनीतिक मंच बन गया है।
AAP की यह पहल क्या महिलाओं को वास्तविक बदलाव दे पाएगी, या फिर यह सिर्फ चुनावी प्रचार तक सीमित रह जाएगी? यह सवाल हर मतदाता के लिए अहम है।