आम आदमी पार्टी की राजनीति: आरोपों की बाढ़, लेकिन आधारहीन दावे?
केजरीवाल का बयान या सियासी ड्रामा?
दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर बड़े आरोप लगाए, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या उनके पास इन दावों को साबित करने के लिए ठोस सबूत हैं? अडानी को लेकर लगाए गए आरोपों में न तो कोई सटीक विवरण है और न ही कोई ठोस प्रमाण। यह केजरीवाल की पुरानी रणनीति लगती है—दिखावटी बयानबाजी से सुर्खियां बटोरना।
“2 दिन में पोल खोलूंगा”—पुराना हथकंडा?
केजरीवाल ने दावा किया कि उनके पास भाजपा के खिलाफ सबूत और गवाह हैं और वे 2 दिनों में पोल खोल देंगे। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने इस तरह का बयान दिया हो। इससे पहले भी, उन्होंने कई बार बड़े खुलासों का वादा किया, लेकिन अंततः ये वादे सिर्फ आरोप बनकर रह गए। क्या यह दिल्ली की जनता को गुमराह करने की कोशिश है?
कानून-व्यवस्था पर सवाल: खुद का ट्रैक रिकॉर्ड खराब
दिल्ली की कानून-व्यवस्था पर भाजपा को घेरने की कोशिश करने वाले केजरीवाल यह भूल जाते हैं कि खुद उनकी पार्टी का ट्रैक रिकॉर्ड कैसा रहा है। दिल्ली में कई बार आप के विधायकों पर अपराध के आरोप लगे हैं। ऐसे में कानून-व्यवस्था पर भाजपा को घेरने का उनका प्रयास खोखला लगता है।
सुरक्षा का मुद्दा या सहानुभूति बटोरने का खेल?
केजरीवाल ने दावा किया कि आम आदमी की सुरक्षा भाजपा के लिए मायने नहीं रखती। लेकिन क्या उनकी पार्टी ने सत्ता में रहते हुए इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाए? तथ्य यह है कि AAP के कार्यकाल में भी दिल्ली में अपराध की घटनाएं कम नहीं हुईं।
पंजाब पुलिस की सराहना: विषयांतर करने की चाल?
अमृतसर की घटना को लेकर पंजाब पुलिस की तारीफ करना भले ही उचित हो, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बयान सिर्फ असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश नहीं है? जब दिल्ली के गंभीर मुद्दे चर्चा में हैं, तब पंजाब की बात करना इस बात को दर्शाता है कि आप के पास दिल्ली के लिए कोई ठोस योजना नहीं है।
अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी के लिए यह समय आत्ममंथन का है। केवल आरोप लगाकर और बड़े-बड़े वादे करके जनता को बार-बार गुमराह नहीं किया जा सकता। दिल्ली की जनता अब ठोस काम चाहती है, न कि आरोपों की राजनीति। समय आ गया है कि AAP अपने प्रदर्शन को लेकर जवाबदेह बने और बेबुनियाद दावों की राजनीति से बाहर निकले।