भारत एक बार फिर से चांद पर कदम रखने जा रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो के बहुप्रतीक्षित अभियानचंद्रयान-3 के प्रक्षेपण को लेकर तैयारियां अंतिम चरणों में हैं.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग को लेकर बड़ा एलान किया है. इसरो ने मिशन, चंद्रयान-3 की लॉन्च तिथि की घोषणा कर दी है. अधिकारियों ने आज घोषणा की कि रॉकेट 13 जुलाई को स्थानीय समयानुसार दोपहर 2:30 बजे लॉन्च किया जा सकता है. चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के मुताबिक, अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी.
इसरो के अधिकारियों ने जानकारी दी कि यह चंद्रयान-2 का ही अगला प्रोजेक्ट है, जो इसके अधूरे कामों को पूरा करेगा.
2047 तक भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में अग्रणी देश होगा
इसरो प्रमुख ने कहा कि भारत 2047 तक अंतरिक्ष के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र होगा. इसके लिए हमें अंतरिक्ष को देश की रणनीतिक संपत्ति के रूप में देखना होगा. इसके लिए हमें अपनी क्षमता का निर्माण करना चाहिए और इसे बनाए रखने के लिए इसे आत्मनिर्भर बनाना चाहिए. इसरो प्रमुख यहां भारतीय वायु सेना के 38वें एयर चीफ मार्शल पीसी लाल स्मारक व्याख्यान में बोल रहे थे. कार्यक्रम में वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी समेत वायु सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे.
लैंडर में चार, रोवर में दो पेलोड
चंद्रयान-3 के लैंडर में चार पेलोड हैं, जबकि छह चक्के वाले रोवर में दो पेलोड हैं. इसके अलावा प्रोपल्शन मॉड्यूल में भी एक स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री पेलोड है जो चंद्रमा के कक्ष से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और ध्रुवमिति माप का अध्ययन करेगा. लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल में लगे पेलोड को इस तरह से तैयार किया गया है जिससे कि वैज्ञानिकों को उनकी मदद से पृथ्वी के इकलौते प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने में मदद मिले. प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर को चांद के कक्ष के 100 किलोमीटर तक ले जाएगा.
लैंडर, रोवर के पुराने नाम रहेंगे
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद ने चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर को वही नाम देने का फैसला किया है जो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के नाम थे. इसका मतलब है कि लैंडर का नाम विक्रम होगा जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. और रोवर का नाम प्रज्ञान होगा.
क्या है चंद्रयान-3 ?
चंद्रयान -3 अंतरिक्ष यान को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से एलवीएम3 (लॉन्च व्हीकल मार्क-III) द्वारा लॉन्च किया जाएगा. इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, चंद्रयान-3 चंद्रयान-2 का ही अगला प्रोजेक्ट है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा. इसमें लैंडर और रोवर शामिल हैं. यह चंद्रयान-2 की तरह ही दिखेगा, जिसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर होगा. चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है. मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं, एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है और जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह पर उतरने में असफल हुआ, उन पर फोकस किया गया है.
चंद्रयान -3 के लॉन्च का एलान चंद्रयान -2 के लैंडर-रोवर के दुर्घटनाग्रस्त होने के चार साल बाद हुआ है. चंद्रयान-3 मिशन के जुलाई में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रमा के उस हिस्से तक लॉन्च होने की उम्मीद है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता.
इसके चरण कौन-कौन से हैं?
चंद्रयान-3 को एक लैंडर, एक रोवर और एक प्रणोदन मॉड्यूल को मिलाकर बनाया गया है जिसका कुल वजन 3,900 किलोग्राम है. अकेले प्रणोदन मॉड्यूल का वजन 2,148 किलोग्राम है जो लैंडर और रोवर को 100 किलोमीटर की चंद्र कक्षा में ले जाएगा. लैंडर मॉड्यूल लैंडर के कम्प्लीट कॉन्फिगरेशन को बताता है. रोवर का वजन 26 किलोग्राम है. रोवर चंद्रयान -2 के विक्रम रोवर के जैसे ही होगा, लेकिन सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करने में मदद के लिए इसमें सुधार किए गए हैं. प्रणोदन मॉड्यूल 758 वाट बिजली, लैंडर मॉड्यूल 738 वाट और रोवर 50 वाट उत्पन्न करेगा.
चंद्रयान -3 का उद्देश्य क्या है?
इसरो के मुताबिक, चंद्रयान -3 का उद्देश्य, चंद्र सतह पर एक सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग और रोविंग क्षमताओं का प्रदर्शन करना है. इसके अलावा, इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोग करना और इंटरप्लेनेटरी मिशन के लिए आवश्यक नई तकनीकों का विकास और प्रदर्शन करना भी इसके अहम उद्देश्य हैं.
सुरक्षित उतरना मुख्य उद्देश्य
चंद्रयान-3 में एक प्रणोदन (प्रपल्शन) मॉड्यूल एक लैंडर और एक रोवर होगा. इसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित उतरना है. चंद्रयान-3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन होगा. इससे पहले चंद्रयान-2 मिशन असफल हो गया था. इसे ध्यान में रखते हुए एल्गोरिदम बेहतर किया गया है.
मिशन 30 दिनों में पूरा होगा. करीब 15 दिन बाद वहां तापमान माइनस 170 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो जाएगा. कह नहीं सकते कि ठंड से लैंडर पर क्या असर पड़ेगा. -डॉ. सीता, पूर्व निदेशक, इसरो