सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन को एक महत्वपूर्ण राहत दी है, जब उसने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें तमिलनाडु पुलिस को फाउंडेशन के खिलाफ मामलों की जांच करने के लिए कहा गया था। शीर्ष अदालत ने अब पुलिस से मामले की स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें ईशा फाउंडेशन ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी।
ईशा फाउंडेशन का पक्ष
ईशा फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में बताया कि करीब 500 पुलिस अधिकारियों ने फाउंडेशन के आश्रम पर छापे मारे हैं और हर कोने की छानबीन की जा रही है। पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। उन्होंने उन दो महिलाओं से जानकारी मांगी, जिनके पिता ने फाउंडेशन पर बंधक बनाने का आरोप लगाया था। न्यायाधीश इस मामले के तथ्यों को समझने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इन महिलाओं से बातचीत करने के लिए अपने कक्ष में गए।
क्या है मामला?
मामला तब शुरू हुआ जब रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने याचिका दायर की। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी बेटियां, गीता और लता, को कोयंबटूर स्थित ईशा योग केंद्र में “ब्रेनवॉश” किया गया। उन्होंने कहा कि फाउंडेशन ने उन्हें अपने परिवार से मिलने नहीं दिया। मद्रास हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को कामराज की याचिका पर एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें पुलिस को निर्देश दिया गया कि वे उनकी बेटियों को अदालत में पेश करें।
क्या हैं आरोप?
कामराज का कहना है कि उनकी बेटियों को ईशा फाउंडेशन में बंदी बनाकर रखा गया है और उन्हें रिहा किया जाना चाहिए। वह तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर से सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं और उनकी दोनों बेटियों ने इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि फाउंडेशन कुछ लोगों को गुमराह कर उनका धर्म परिवर्तन कर रहा है और उन्हें “भिक्षु” बना रहा है, साथ ही उनके परिवार को उनसे मिलने नहीं दे रहा।