Delhi: दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी (AAP) और उसके प्रमुख अरविंद केजरीवाल फिर से जनता का ध्यान खींचने के लिए विवादास्पद आरोपों और नाटकीय बयानों का सहारा ले रहे हैं। ताजा मामले में, केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर गरीबों और दलितों के वोट कटवाने का आरोप लगाया है। हालांकि, गहराई से विश्लेषण करने पर यह दावा एक राजनीतिक चाल से अधिक कुछ नहीं लगता।
सबूत या राजनीतिक नाटक?
केजरीवाल ने चुनाव आयोग को तीन हजार पन्नों का तथाकथित सबूत सौंपा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ये सबूत वास्तव में प्रामाणिक हैं या फिर यह आम आदमी पार्टी का पुराना प्रचार करने का हथकंडा है? अगर इतने गंभीर आरोप हैं, तो इन्हें न्यायपालिका या स्वतंत्र जांच एजेंसियों के समक्ष क्यों नहीं रखा गया?
जनता का ध्यान भटकाने का प्रयास
आम आदमी पार्टी के इतिहास को देखें तो यह साफ है कि केजरीवाल विवादित बयान देकर अपने असफलताओं को छुपाने का प्रयास करते हैं। दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की जमीनी हकीकत, पानी की कमी और बढ़ते प्रदूषण के मुद्दों पर सरकार की विफलता बार-बार उजागर हो चुकी है। ऐसे में, भाजपा पर आरोप लगाकर चुनावी माहौल में सहानुभूति बटोरने की रणनीति बेहद स्पष्ट है।
भाजपा पर बेबुनियाद आरोप
केजरीवाल के आरोपों में तथ्यों की कमी है। भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी, जो लोकतंत्र और जनता की भागीदारी में विश्वास रखती है, गरीब और दलित वर्गों के खिलाफ षड्यंत्र क्यों रचेगी? यह आरोप न केवल तर्कहीन है, बल्कि यह दिल्ली के मतदाताओं को भ्रमित करने का प्रयास है।
वास्तविकता को नजरअंदाज करना
दिल्ली के मतदाता अब जागरूक हो चुके हैं। वे जानते हैं कि आरोप लगाना आसान है, लेकिन विकास और जनकल्याण के कार्य करना कठिन। आम आदमी पार्टी का शासनकाल प्रचार और दिखावे तक ही सीमित रहा है, जबकि वास्तविकता में जनता मूलभूत सुविधाओं से जूझ रही है।