
नई दिल्ली . सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मामलों की जांच के दौरान जांच एजेंसियों द्वारा आरोपियों/संदिग्धों के निजी लैपटॉप, फोन व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त करने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की मांग पर जल्द सुनवाई के लिए सहमत हो गई है. शीर्ष अदालत ने कहा कि 2 नवंबर से मामले की सुनवाई की जाएगी.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने इस मामले का उल्लेख करते हुए जल्द सुनवाई करने का आग्रह किया. उन्होंने पीठ से कहा कि मामले की सुनवाई पूरी होने में बहुत अधिक वक्त नहीं लगेगा और 10 मिनट में ही अपनी पूरी बात रख देंगे. इसके बाद पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई दो नवंबर तय कर दी. अदालत में राम रामास्वामी व अन्य ने 2021 में अधिवक्ता एस. प्रसन्ना के जरिए याचिका दाखिल कर जांच एजेंसियों द्वारा निजी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त करने के बार में दिशा-निर्देश बनाने की मांग की. याचिका में कहा गया है कि एजेंसियों को सर्च/छापेमारी और जब्ती की शक्तियों में निजता के अधिकार, आत्म-दोषारोपण के खिलाफ अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त संचार की सुरक्षा के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों को शामिल करते हैं.
उचित दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत याचिका में कहा गया है कि जांच एजेंसियों द्वारा कथित आरोपियों/संदिग्धों के मनमाने तरीके से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जब्त करने के लिए उचित दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत है. याचिका में शीर्ष अदालत से इस बारे में समुचित दिशा-निर्देश बनाने की मांग की गई है. हाल ही में मीडिया संस्थान ‘न्यूजक्लिक’ के पत्रकारों पर दिल्ली पुलिस की छापेमारी के मद्देनजर मीडिया संगठनों के एक समूह ने देश के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर पत्रकारों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जब्त करने के लिए दिशा-निर्देश की मांग की है.
केंद्र सरकार पर लगाया था जुर्माना
मामले में आदेश के बाद भी जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर शीर्ष अदालत ने कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. मामले में केंद्र सरकार ने कहा था कि जांच के दौरान जब्त किए गए उपकरणों को वापस करने के लिए कोई व्यापक (जैकेट) आदेश नहीं दिया जा सकता है. केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि हालांकि निजता का अधिकार व्यक्तिगत स्वायत्तता और स्वतंत्रता की अवधारणा में निहित है, यह पूर्ण अधिकार नहीं है.