
नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव के नतीजों से भाजपा को बड़ा झटका लगा है. गठबंधन के सहारे उसने बहुमत तो हासिल कर लिया है, लेकिन जिस तरह से पार्टी ने चुनाव अभियान चलाया था और जो दावे किए थे उनसे वह बहुत दूर रह गई. यहां तक कि भाजपा को अपने दम पर बहुमत भी नहीं मिल सका, जो कि उसने 2014 व 2019 के आम चुनाव में हासिल किया था.
जाहिर है जनता के बीच न तो मोदी की गारंटी अपना असर दिखा सकी और न ही विकास के बड़े काम और विभिन्न लाभार्थी योजनाएं. दूसरी तरफ, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को हवा देकर विपक्ष अपनी जड़ जमाने में सफल रहा है.
मोदी के इर्द-गिर्द सिमटा रहा भाजपा-राजग का चुनाव अभियान: लगभग डेढ़ महीने लंबे चुनाव अभियान के बाद मंगलवार सुबह जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आने शुरू हुए तो किसी को भी इस तरह के परिणामों की उम्मीद नहीं थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द भाजपा और राजग का चुनाव अभियान सिमटा रहा. मोदी का खुद की जीत का अंतर कम हो गया और कई बड़े नेता चुनाव मैदान में हार गए. भाजपा को अपने ही सबसे मजबूत गढ़ में पिछड़ना पड़ गया. पार्टी की मुख्य विरोधी कांग्रेस को मिली अनअपेक्षित सफलता ने भाजपा को बहुमत से पीछे धकेल दिया. हालांकि कुछ राज्यों में उसने जबरदस्त प्रदर्शन किया और नए गठबंधनों के साथ उसे काफी सफलता भी मिली, लेकिन उसकी अपनी कमजोरी ही उसके बहुमत की राह में रोड़ा बन गई. मसलन, उत्तर प्रदेश में लगातार दो लोकसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज करने वाली भाजपा इस बार विपक्षी इंडिया गठबंधन से पीछे गई. बीते चुनाव में 62 सीटें जीतने वाली भाजपा को उत्तर प्रदेश में केवल 31 सीटें ही मिलीं. उसके कई प्रमुख नेता चुनाव हार गए और कई प्रमुख नेताओं का अंतर काफी घट गया.
प्रत्याशियों के चयन में भी कुछ गड़बड़ियां हुईं. जिन क्षेत्रों से मौजूदा सांसदों को लेकर नाराजगी थी व पार्टी के पास ऐसे सर्वे भी थे, बावजूद उनको टिकट देना पार्टी को भारी पड़ा. दूसरे दलों से आए उम्मीदवारों पर भरोसा करने से भी काडर में नाराजगी बढ़ी थी.