
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने हाल ही में एक प्रस्ताव पारित कर सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए कुछ अहम बदलावों पर कड़ा ऐतराज जताया है। एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि इन बदलावों के संबंध में उनसे कोई परामर्श नहीं किया गया, जबकि न्यायिक प्रक्रिया में उनका भी एक महत्वपूर्ण योगदान और अधिकार है।
विशेष तौर पर, सुप्रीम कोर्ट में दशकों पुरानी न्याय की देवी की मूर्ति में किए गए परिवर्तनों पर बार एसोसिएशन ने आपत्ति उठाई है। नई मूर्ति में देवी की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और तलवार की जगह संविधान थमा दिया गया है। कोर्ट का कहना है कि यह परिवर्तन भारत के न्याय तंत्र के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जहां कानून अब न तो अंधा है और न ही केवल दंडात्मक। यह बदलाव देश की औपनिवेशिक विरासत से दूरी बनाने का संकेत माना जा रहा है। लेकिन, एसोसिएशन ने सवाल किया है कि इस तरह का बड़ा बदलाव किस आधार पर किया गया और क्यों उन्हें इस पर कोई जानकारी नहीं दी गई।
इसके अलावा, एसोसिएशन ने न्यायधीशों की लाइब्रेरी में प्रस्तावित संग्रहालय पर भी आपत्ति दर्ज की है। उनका कहना है कि उन्होंने लाइब्रेरी में संग्रहालय की बजाय अपने सदस्यों के लिए एक कैफे-सह-लाउंज की मांग की थी, क्योंकि वर्तमान कैफेटेरिया उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ है। इसके बावजूद संग्रहालय पर काम शुरू कर दिया गया, जबकि उनके अनुरोध की अनदेखी की गई।
बार एसोसिएशन ने इस तरह के एकतरफा निर्णयों पर अपनी नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि भविष्य में इस तरह के बदलावों पर उन्हें भी विचार-विमर्श में शामिल किया जाए।