दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति के एक सदस्य के चुनाव को लेकर चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली के उपराज्यपाल के हस्तक्षेप पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने तीखे शब्दों में पूछा, “मेयर की गैरमौजूदगी में चुनाव कराने की इतनी हड़बड़ी क्यों?” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि नगर निगम कानून की धारा 487 का उपयोग सिर्फ कार्यकारी अधिकारों के लिए होना चाहिए, न कि विधायी मामलों में दखल के लिए।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और आर महादेवन की पीठ ने उपराज्यपाल के इस हस्तक्षेप को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया। कोर्ट ने तंज कसते हुए कहा, “अगर आप इस तरह से दखल देते रहेंगे, तो लोकतंत्र का क्या होगा?”
पीठ ने उपराज्यपाल को दो हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया और स्पष्ट किया कि इस प्रकार की कार्रवाई से जनप्रतिनिधियों के अधिकारों पर आघात हो सकता है।
दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय जैन ने कोर्ट में तर्क दिया कि मेयर की याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को शुरुआती तौर पर सही मानने के बावजूद, धारा 487 के गलत प्रयोग को देखते हुए इस मुद्दे पर आगे विचार करने का फैसला लिया।
सुनवाई के दौरान, अदालत ने मेयर शैली ओबेरॉय के कुछ निर्णयों पर भी सवाल उठाए, लेकिन यह स्पष्ट किया कि इससे उपराज्यपाल के हस्तक्षेप को दरकिनार नहीं किया जा सकता। मामला अभी जारी है, और सभी की नजरें अब अदालत के अगले फैसले पर टिकी हैं।