दिल्ली

शोध में खुलासा : बच्चों में बढ़ी टेक्नोलॉजी की लत, सिमट रहा सामाजिक दायरा

शोध में खुलासा : बच्चों में बढ़ी टेक्नोलॉजी की लत, सिमट रहा सामाजिक दायरा

अमेरिका में किए गए एक शोध में पता चला है कि प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया पर अत्यधिक समय बिताने से बच्चों को अपने परिवार, दोस्तों और समाज के साथ संबंध बनाने में परेशानी आ सकती है।

यह निष्कर्ष 1,146 अभिभावकों पर किये गये एक सर्वेक्षण में निकलकर सामने आया है। सर्वे में भाग लेने वाले 50 प्रतिशत माता-पिता का मानना है कि उनके बच्चे टेक्नोलॉजी के साथ बहुत ज्यादा समय बिताते हैं। वहीं, 30 प्रतिशत अभिभावकों ने कहा है कि वे इस बात से परेशान हैं कि उनके बच्‍चों को स्‍कूल में दूसरे बच्चे परेशान करते हैं। इसके अलावा 22 प्रतिशत ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के कारण समाज में आए बदलाव को उनके बच्चों पर असर पड़ रहा है।

लगभग पांच में से एक माता-पिता (19 प्रतिशत) ने बताया कि नस्ल, जातीयता, संस्कृति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति या लिंग के आधार पर असमानता के कारण उनके बच्चे स्कूल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते।

द किड्स मेंटल हेल्थ फाउंडेशन की कार्यकारी नैदानिक ​​निदेशक और नेशनवाइड चिल्ड्रन हॉस्पिटल की बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. एरियाना होएट ने कहा, सामाजिक संबंध अपनेपन की भावना को बढ़ावा देते हैं। जो शैक्षणिक सफलता के साथ समग्र कल्याण के लिए भी आवश्यक है।

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होएट ने कहा, प्रौद्योगिकी के अपने फायदे और नुकसान हैं। माता-पिता को इन चीजों के प्रति सचेत रहने की जरूरत है, क्‍योंकि बच्‍चों का तकनीक के प्रति ज्यादा रुझान उनकी वास्तविक दुनिया के सामाजिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है।

होएट ने अभिभावकों को सलाह दी है कि वे अपने बच्चों पर विशेष रूप से ध्‍यान दें। इसके साथ ही वह डिवाइस को कितना समय देते हैं, वास्तविक दुनिया की गतिविधियों से अलग रहने के साथ चिड़चिड़ापन, शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव और ऑफ़लाइन बातचीत या स्कूल के प्रदर्शन में बदलाव जैसे संकेतों पर भी नजर रखने की सलाह दी है।

बच्‍चों में आ रहे ये बदलाव अभिभावकों को यह समझने में मदद करते हैं कि उनके बच्चे का स्क्रीन टाइम उनके सामाजिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है या नहीं।

सर्वेक्षण में कक्षा में संबंधों से जुड़ी कई और चिंताएं भी उभरकर सामने आई हैं। इनमें 14 प्रतिशत का मानना है कि उनके बच्चों को कक्षा में ढलने में परेशानी आ रही है। अभिभावकों में 17 प्रतिशत का कहना है कि उनके बच्चे अपनी कक्षा में दोस्त नहीं बना पा रहे हैं। इसके अलावा 13 प्रतिशत अभिभावकों ने कहा है कि उनके बच्चों को कक्षा में धमकी या अलग-थलग किए जाने का डर है। पांच प्रतिशत का कहना है कि उनके बच्चे खेल और किसी अन्य गतिविधियों में दोस्त नहीं बना पा रहे हैं।

होएट ने हाशिए पर पड़े या कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के बच्चों को अपनेपन का एहसास कराने में मदद करने के महत्व पर जोर दिया।

उन्होंने सुझाव दिया कि माता-पिता और देखभाल करने वाले ऐसे तरीके खोजें, जिससे उनके बच्चे सामाजिक संबंध बना सकें। साथ ही वह ऑनलाइन अनुभवों से संबंधित किसी भी मुद्दे को संबोधित करने के लिए नियमित रूप से अपने बच्चे से संपर्क करें।

होएट ने कहा, शिक्षक और माता-पिता अपनेपन की भावना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन इसमें यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह उन अप्रवासी माता-पिता के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है जो स्कूल प्रणाली और संस्कृति को पूरी तरह से नहीं समझते हैं।

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