
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच झुग्गीवासियों को लेकर विवाद गहरा गया है। AAP के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भाजपा के झुग्गी प्रवास कार्यक्रम को ‘झुग्गी टूरिज़्म’ करार दिया है, जो चुनावी राजनीति का हिस्सा बताया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी केवल चुनावी लाभ के लिए झुग्गीवासियों के बीच जाती है, लेकिन उनके वोट लेने के बाद उन्हें नजरअंदाज कर देती है।
मनीष सिसोदिया का आरोप
मनीष सिसोदिया ने कहा कि पिछले 10 सालों में जहां-जहां बीजेपी ने झुग्गियां तोड़ने की कोशिश की, अरविंद केजरीवाल और AAP ने उन्हें रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया। वह हमेशा झुग्गीवासियों के साथ खड़े रहे, जबकि बीजेपी चुनावों से पहले झुग्गीवासियों के बीच जाकर उन्हें “झुग्गी टूरिज़्म” का हिस्सा बनाती है, और बाद में बुलडोज़र भेजकर उनके आशियानों को तोड़ देती है। सिसोदिया ने सुंदर नर्सरी झुग्गी का उदाहरण दिया, जहां बीजेपी ने पहले झुग्गीवासियों से मिलने का दावा किया और बाद में उन्हें उजाड़ दिया।
केजरीवाल का झुग्गीवासियों के प्रति समर्पण
सिसोदिया ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा झुग्गियों में बिताया है और वे हमेशा झुग्गीवासियों के कल्याण के लिए काम करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अरविंद केजरीवाल ने झुग्गीवासियों की समस्याओं को समझा और उनके लिए कई योजनाएं बनाई, जिससे उनकी जिंदगी में सुधार हुआ है।
बीजेपी की झुग्गीवासियों के प्रति नीतियों पर सवाल
सिसोदिया ने बीजेपी पर यह आरोप भी लगाया कि वह चुनावों से पहले झुग्गीवासियों को वादे करती है, लेकिन चुनाव बाद उन वादों को पूरा नहीं करती। उन्होंने बीजेपी द्वारा किए गए झुग्गी माफिया के आरोपों का भी जिक्र किया, जिसमें कुछ भूमाफिया आज भी झुग्गियों की जगहों पर कब्जा करके अपनी संपत्ति बना रहे हैं, जबकि झुग्गीवासियों को पुलिस द्वारा तंग किया जा रहा है।
झुग्गीवासियों का दर्द
सुंदर नर्सरी के स्थानीय निवासियों ने भी अपनी समस्याओं को साझा किया। उनका कहना था कि उनकी झुग्गी 2006 से पहले से पंजीकृत है, लेकिन फिर भी उनकी अनदेखी की जा रही है। झुग्गी माफिया सक्रिय है, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। वहीं, जब वे अपने प्लॉट पर जाते हैं, तो पुलिस उन्हें मारपीट करती है और भागने के लिए मजबूर करती है।
यह मामला दिल्ली में झुग्गीवासियों के अधिकारों और उनकी समस्याओं को लेकर बढ़ती राजनीतिक बहस को और तेज करता है। AAP ने इस मुद्दे को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की है, जबकि बीजेपी की नीतियों को लेकर सवाल खड़े किए हैं।