
छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा गांव में एक ईसाई व्यक्ति को दफनाने को लेकर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाया। इस मामले में दो सदस्यीय पीठ के जजों की राय विभाजित रही। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अलग-अलग दृष्टिकोण पेश किए, लेकिन अंततः विवाद को बड़ी पीठ के पास भेजने की बजाय सर्वसम्मति से फैसला लिया गया।
फैसले की मुख्य बातें
जस्टिस बीवी नागरत्ना का दृष्टिकोण
जस्टिस नागरत्ना ने अपीलकर्ता को अपने पिता को अपनी निजी कृषि भूमि में दफनाने की अनुमति दी।
उन्होंने कहा कि भाईचारा बढ़ाना और संवेदनशीलता बनाए रखना सभी नागरिकों का कर्तव्य है।
उनके अनुसार, राज्य सरकार को ईसाई समुदाय के लिए पूरे राज्य में कब्रिस्तान चिन्हित करने का निर्देश दिया गया, जो दो महीने के भीतर पूरा करना होगा।
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का दृष्टिकोण
जस्टिस शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि दफन केवल ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में ही होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता के पिता को करकापाल गांव में ईसाइयों के लिए निर्धारित क्षेत्र में दफनाना उचित होगा, जो अपीलकर्ता के गांव से 20-25 किलोमीटर दूर है।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय
पीठ ने शव को ईसाइयों के लिए निर्धारित स्थान पर दफनाने का निर्देश दिया। साथ ही, राज्य सरकार को ईसाई आदिवासियों को पर्याप्त सुरक्षा और सहयोग प्रदान करने का निर्देश दिया। यह फैसला इस तथ्य को ध्यान में रखकर लिया गया कि शव 7 जनवरी से शवगृह में पड़ा था और विवाद को जल्द से जल्द निपटाना जरूरी था।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता रमेश बघेल ने अपने पिता को उनके धर्म के रीति-रिवाज के अनुसार दफनाने की अनुमति मांगी थी।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस मांग को खारिज करते हुए कहा था कि दफन केवल निर्दिष्ट क्षेत्र में ही किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार की इस विफलता पर नाराजगी जताई, जिससे अपीलकर्ता को शीर्ष अदालत का रुख करना पड़ा।