
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के छिंदवाड़ा में एक बेटे को अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। रमेश बघेल, जो दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, का आरोप है कि गांव वाले उनके मृत पिता को दफनाने नहीं दे रहे हैं। उनके पिता का निधन 12 दिन पहले हुआ था, लेकिन अभी तक उनका शव शवगृह में पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका: छत्तीसगढ़ सरकार से जवाब मांगा
रमेश बघेल ने पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन वहां से निराश होने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सर्वोच्च अदालत ने इस मामले पर छत्तीसगढ़ सरकार से जवाब मांगा है।
भेदभाव का आरोप: मामले की गंभीरता बढ़ी
रमेश बघेल की ओर से मशहूर वकील प्रसाद चौहान ने अदालत में उनका पक्ष रखा। उन्होंने इसे भेदभाव का मामला बताते हुए कहा कि बस्तर में इस तरह के कई मामले सामने आ रहे हैं। सरकार को इसकी जानकारी है, फिर भी राज्य में भेदभाव की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।
पिता की आखिरी इच्छा: कब्रिस्तान में दफनाना
7 जनवरी को रमेश बघेल के पिता, सुभाष बघेल का निधन हो गया। उनकी आखिरी इच्छा थी कि उनका शव परिजनों की कब्र के पास दफनाया जाए। लेकिन गांव के लोगों ने उनके शव को कब्रिस्तान में दफनाने की इजाजत नहीं दी।
धार्मिक विवाद: ईसाई धर्म अपनाने पर विरोध
रमेश बघेल के दादा ने करीब 30 साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था, और छिंदवाड़ा के कब्रिस्तान में उनके दादा और अन्य रिश्तेदारों के शव दफनाए गए थे। अब रमेश बघेल के पिता का शव दफनाने से रोकने के पीछे गांव में बढ़ते धार्मिक विवाद को वजह बताया जा रहा है। रमेश ने कहा कि उनके गांव के लोग ईसाई धर्म को बायकॉट करने का ऐलान कर चुके हैं, और धर्म बदलने के कारण वे परिवार को कब्रिस्तान में जाने की अनुमति नहीं देना चाहते।
हाईकोर्ट का फैसला: अलग कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार की अनुमति
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि छिंदवाड़ा में ईसाई धर्म का एक अलग कब्रिस्तान है, जहां रमेश बघेल अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सकते हैं। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि यदि गांव में जबरन दफनाया गया, तो समाज में अशांति फैल सकती है।