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महिला बाल विकास में हुए गफलत में एक नया खुलासा

छत्तीसगढ़ में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए 2018 में 18536 मोबाईल खरीदी की गई थी क्रय मामले में एक नया खुलासा सामने आया है कार्यकर्ताओ के लिए खरीदे गए 18536 मोबाइलों को षणयंत्र पूर्वक जबरिया में अमानक बताया गया और भुगतान को भी रोका गया मामले में जांच उपरांत महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए है मामले में उच्च स्तरीय जांच में प्रतीक खरे निर्दोष पाए गए जांच में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता प्रताडना का शिकार हुई जबकिं मोबाईलो कि जांच सात बार अलग अलग मापदंडों पर कराई गई इस पूरे प्रकरण में प्रभारी संयुक्त संचालक सुरेंद्र चौबे पर दोष सिद्ध पाया गया जिसने अनाधिकृत लैब में जांच को आधार बनाकर खरीदी को अमानक बताया था .

पूरा मामला महिला बाल विकास विभाग का है जहाँ विश्व बैंक की सहायता से संचालित इस्निप परियोजना अन्तर्गत जुलाई अगस्त 2018 में मोबाईल क्रय किया गया था . मोबाईलो की गुणवत्ता की जांच पांच से छः बार अलग – अलग तरीके से कराई गई जांच में मोबाइल सही और गुणवत्तापूर्ण पाए गए

जांच रिपोर्ट के अहम बिंदु जिसपर जांच हुई : –

भारत सरकार ने पूरे देश में आंगनबाड़ी केंद्रों द्वारा मोबाईल से डाटा भेजने के लिए परियोजना से स्वीकृत की थी डाटा भेजने के लिए भारत सरकार ने बिल मेलेन्दा गेट्स फाउडेंशन से एक ऐप तैयार करवाया था . इस ऐप को संचालित करने के लिए मोबाईल में जो स्पेसिफिकेशन की जरूरत थी वह जैम पोर्टल पर विशेष तौर पर परीक्षण कर कंपनियों के मोबाईल के स्पेसिफिकेशन जांच केवल योग्य एवं चयनित कंपनियों को ही जैम द्वारा प्रदाय हेतु अधिकृत किया गया था .

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जैम द्वारा मोबाईल फ़ॉर आई.सी.ड़ी.एस. का अलग से पोर्टल खोला गया छत्तीसगढ़ राज्य में जैम पोर्टल के इस लिंक पर नियमानुसार टेंडर न्यूनतम दर वाली फर्म जेना मार्केटिंग को प्रदान किया गया था . टेंडर आदेश देने के पूर्व ही निविदा प्रस्तुत करने के साथ मोबाइल नमूने और उसकी जांच रिपोर्ट फर्म ने प्रस्तुत की थी .

बिंदुवार जांच की अगली कड़ी में भारत सरकार तथा चिप्स से मान्यता प्राप्त लेबोट्र्री से मोबाइल भेजकर तीसरी जांच कराई गई इसके बाद मोबाइल गुणवत्ता और क्रय नियम के ध्यान में रखते हुए जांच के लिए एक तकनीकी समिति बनाई गई जिसमें एनआईसी चिप्स तथा महिला पॉलिटेक्निक के तकनीकी लोगो से चौथी जांच कराई गई . चौथी जाँच के उपरांत 18536 नग मोबाइल प्राप्त होने के बाद 558 मोबाइलों की जांच मैदानी स्तर पर तैनात तकनीकी समन्वयकों द्वारा कराई गई और 600 मोबाइल फील्ड में प्रशिक्षण के लिए भेजे गए जिसमे भी भारत सरकार के ऐप का सुचारू रूप से चलना सही पाया गया और गुणवत्ता भी सही मापदंडों के अनुरूप ही पाई गई .

प्रभारी संयुक्त संचालक ने 2019 में अनाधिकृत बिना मान्यता प्राप्त लैब में कराया जांच : –

मामला तूल 2019 के बाद पकड़ा जब विभाग के प्रभारी संयुक्त संचालक सुरेन्द्र चौबे ने एक अनाधिकृत लैब में मोबाइल जांच के भेजा जो लैब शासन से मान्यता प्राप्त भी नही है प्रभारी संयुक्त संचालक की भूमिका इसी बात से स्पष्ट होती है जांच के पूर्व ही उक्त लैब ने विभाग को 23 अक्टूबर 2019 में को एक मेल भेजकर यह अवगत कराया गया कि उक्त लैब इस तरह से मोबाइल डिवाईसो की जांच के लिए प्राधिकृत नही है और लैब शासन से मान्यता प्राप्त भी नही है इस मेल के बाद भी संयुक्त संचालक द्वारा उक्त लैब में जांच करने का प्रेसर बनाया जबकिं उक्त लैब की रिपोर्ट में भी मोबाइलों को अमानक होने की पुष्टि का स्पष्ट आलेख नही है लेकिन संयुक्त संचालक द्वारा पूरे प्रकरण में षणयंत्र पूर्वक अस्पष्ट रिपोर्ट को आधार बनाकर मोबाइलों का वितरण और भुगतान दोनों में रोक लगा दी .

उच्च स्तरीय जांच में हुआ खुलासा : –

उक्त जांच और जांच रिपोर्ट को देखते हुए महिला बाल विकास विभाग ने एक हाई लेबल की उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की जांच प्रकरण सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा बनवाई गई समिति में सुब्रत साहू अपर मुख्य सचिव , मनोज पिंगुआ प्रमुख सचिव , रीना बाबा कंगाले सचिव , विशेष सचिव वित्त विभाग और दिव्या मिश्रा संचालक महिला बाल विकास को सदस्य बनाया गया इस उच्च स्तरीय जांच में हर बिंदु में बुंदूवार अध्ययन करके जांच रिपोर्ट तैयार की जांच में यह पाया गया कि जिस प्रकरण में प्रतीक खरे को दोषी बताया गया था वह आरोप पूरी तरह से झूठा और बेबुनियाद पाया गया बल्कि मोबाइलों का वितरण न होने और भुगतान न होने के कारण प्रभारी संयुक्त संचालक सुरेंद्र चौबे को दोषी पाया .

 

 

जांच समिति की रिपोर्ट में इस बात की अनुशंसा की गई थी कि सभी मोबाइल उपयोग लायक़ है जांचोपरांत मोबाइलों का वितरण कराये जाने का निर्णय लिया जाए . जहाँ तक आरोप फंड की कमी का है तो यह बताना जरूरी है कि उक्त सतत परियोजना के अन्तर्गत आता है इसलिए फंड की उपलब्धता या अनुपलब्धता का तो कोई प्रश्न चिन्ह ही नही उठता है .

विभाग सचिव और आयुक्त स्व. एम. गीता ने प्रकरण का निपटारा कर भुगतान का दे दिया था आदेश : –

मामले में 7 जून 2019 को विभाग की सचिव और आयुक्त रही स्व. एम. गीता इस मामले का निपटारा करने और भुगतान का आदेश का अनुमोदन दे दिया था लेकिन इस नस्ती भुगतान करने और वितरण के लिए वापस नही लौटाया गया . इसके बाद अगस्त 2019 में एम गीता हावर्ड विश्विद्यालय चली गई एम गीता के जाने के बाद मामला पुनः उठाया गया . इसके लिए 2019 में बची राशियों का बजट प्रावधान भी किया गया था इस जांच और निपटारे के बाद 2019 में ही मोबाइलों का विरतण और भुगतान कर दिया गया होता तो मोबाइल गोदामो में धूल खाते न पड़े होते . आपको बता दे 18 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को आज पर्यन्त तक मोबाइल वितरण नही किया गया है यह आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओ को परेशान किया जा रहा है कि वह अपने निजी मोबाइल से डाटा भेजे

2020 से 23 तक प्रदेश के अन्य जिलों में इसी परियोजना के माध्यम से 26 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मोबाइल बांटे गए : –

मालूम हो कि 2020 से लेकर 2023 के बीच प्रदेश भर के अन्य जिलों के इसी परियोजना के माध्यम से 26 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मोबाइल वितरण किया जा चुका है जबकिं न्यायधानी में इस पूरे प्रकरण में षणयंत्र पूर्वक मोबाइलों को अमानक ठहराकर वितरण और भुगतान पर रोक लगा दी गई जो सोची समझी रणनीति और षणयंत्र का हिस्सा थी इस बात की स्पष्टता ऐसे भी सिद्ध होती है कि 2019-20 में उच्च स्तरीय जांच जब शुरू हुई जो 2022 तक चली और इस चलती जांच के बीच मे ही संचनालय महिला बाल विकास विभाग ने बार बार स्टॉक हुए मोबाइल को वापस लेजाने के लिए फर्म को लेख लिखा जाता रहा जबकिं जांच में फर्म को अपना पक्ष रखने की लिए भी बुलाया गया था . आश्चर्य की बात है एक तरह इस गंभीर मामले में उच्च स्तरीय जांच चालू थी तो जिसका नतीजा भी नही आया फिर इस तरह फर्म को मोबाइल वापस लेजाने का लेख बहुत सारे संदेहों को जन्म देता है .

इस जांच और तथ्यों के आधार पर फर्म ने अपना दावा उच्च न्यायालय में पेश कर मध्यस्तता के माध्यम से प्रकरण को निपटाने और ब्याज सहित राशि भुगतान की मांग की है .

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