
Delhi: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के ठीक पहले, आम आदमी पार्टी (AAP) ने बीजेपी के दिग्गज नेता सुरेंद्र पाल सिंह बिट्टू को अपनी पार्टी में शामिल किया, लेकिन यह कदम AAP की परेशानियों को छिपाने का प्रयास अधिक नजर आ रहा है। दरअसल, इस नई सदस्यता से पार्टी की वफादारी और अंदरूनी असंतोष की समस्याएं और भी स्पष्ट हो गई हैं।
सुरेंद्र पाल सिंह बिट्टू, जो दो बार के विधायक रहे हैं, ने तिमारपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की संभावनाओं का संकेत दिया है। हालांकि, AAP का यह कदम भाजपा के लिए एक झटका हो सकता है, लेकिन यह पार्टी की अंदरूनी कमजोरियों को भी उजागर करता है। जब पार्टी ऐसे नेताओं को अपनी صفों में शामिल कर रही है, जिनका राजनीतिक इतिहास विवादों से भरा हुआ हो, तो यह खुद AAP की साख पर सवाल खड़ा करता है।
बिट्टू का कहना है कि AAP ही वो पार्टी है जो “आम आदमी के दर्द को समझती है,” लेकिन यह बयान AAP की असल नीयत पर संदेह पैदा करता है। पिछले कुछ वर्षों में, दिल्ली में AAP के शासन में विकास की योजनाएं ढीली पड़ी हैं, और अब पार्टी नए चेहरों को सामने लाकर यह साबित करना चाहती है कि वह चुनावों में अपनी पकड़ बनाए रख सकती है। हालांकि, यह कदम किसी भी असल बदलाव का संकेत नहीं है, बल्कि पार्टी की असलियत को छिपाने की कोशिश मात्र है।
इसके अलावा, AAP का बार-बार नए चेहरे लाने और टिकटों में बदलाव करने का सिलसिला यह दिखाता है कि पार्टी अपनी अंदरूनी राजनीति और रणनीतियों में असमंजस का शिकार है। पहले की तरह एक मजबूत, स्थिर नेतृत्व की कमी और अपनी ही सरकार की नीतियों में बदलाव के कारण पार्टी को जनता के बीच में खासी आलोचना का सामना करना पड़ा है।
वहीं, मनीष सिसोदिया का यह बयान कि बिट्टू का “राजनीतिक अनुभव पार्टी के लिए फायदेमंद होगा,” वास्तव में AAP की स्थिति को और कमजोर कर देता है। जब सिसोदिया खुद जेल में बंद हैं और पार्टी की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है, तो क्या ऐसे नेताओं का पार्टी में स्वागत करना वाकई में सकारात्मक संदेश देता है?
इन सभी घटनाक्रमों से यह साफ होता है कि AAP चुनावी रणनीति के लिए किसी भी हद तक जा सकती है, लेकिन इन कोशिशों में पार्टी की असलियत और सत्ता की भूख छिपी हुई है। AAP की यह रणनीति केवल एक शॉर्टकट जैसा प्रतीत होती है, जो समय के साथ पार्टी के भीतर की असंतोषजनक स्थितियों और नीतिगत विफलताओं को छिपाने का एक प्रयास है।