शुक्रवार, 29 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित शाही जामा मस्जिद सर्वेक्षण से जुड़े विवाद पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि जब तक हाई कोर्ट का आदेश न हो, तब तक निचली अदालत कोई कार्रवाई न करे।
हाई कोर्ट क्यों नहीं गए?
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से पूछा कि वे सीधे सुप्रीम कोर्ट आने से पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट क्यों नहीं गए। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को सलाह दी कि वे हाई कोर्ट में धारा 227 के तहत याचिका दायर करें। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इस मामले में अंतरिम अवधि में कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए और याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है।
देशभर में बढ़ते विवादों पर चिंता
याचिकाकर्ता ने कहा कि देशभर में इसी तरह के कई मामले लंबित हैं, जिनमें से पांच अकेले उत्तर प्रदेश में हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसी घटनाओं में अक्सर “मनगढ़ंत कहानियां” बनाई जाती हैं। कोर्ट ने सभी पक्षों के प्रतिनिधियों के साथ एक शांति समिति बनाने का सुझाव दिया, ताकि तटस्थता सुनिश्चित हो और किसी भी तरह की हिंसा रोकी जा सके।
शांति और सद्भाव पर जोर
सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 19 दिसंबर को पारित आदेश को उचित मंच पर चुनौती देने की सलाह दी। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी अपील या संशोधन की सुनवाई तीन दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद संभल में स्थित जामा मस्जिद को लेकर है, जिसे मुगल शासक बाबर के शासनकाल में बनाया गया था। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद के स्थान पर पहले ‘हरि हर मंदिर’ था और उन्होंने न्यायालय से वहां पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की। इस विवाद ने तब गंभीर रूप लिया जब 24 दिसंबर को पुरातत्व सर्वेक्षण टीम के मस्जिद का दौरा करने पर झड़पें हुईं।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को शांति और सद्भाव बनाए रखने पर जोर दिया। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि इस संवेदनशील मुद्दे पर न्यायपालिका के सभी स्तरों पर निष्पक्षता से कार्यवाही हो।