Diwali 2024: दिवाली का पर्व हर साल कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। इस अवसर पर उन्हें खील-बताशे का भोग अर्पित किया जाता है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
खील-बताशे का विशेष महत्व
लक्ष्मी और गणेश को खील-बताशे का भोग इसलिए चढ़ाया जाता है क्योंकि ये सफेद रंग के होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मां लक्ष्मी को सफेद रंग की चीजें प्रिय हैं। खील और बताशे दोनों ही इस विशेष रंग में होते हैं, जिससे ये मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने में सहायक होते हैं।
खील का तात्पर्य
खील, धान से बनाया जाता है, जो चावल का एक रूप है। पुरानी परंपराओं के अनुसार, मां लक्ष्मी को पहले इस फसल का भोग अर्पित किया जाता था। यह एक तरह का सम्मान है, जो समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
शुक्रदेव की कृपा
दिवाली के दिन खील-बताशे का भोग चढ़ाने का एक अन्य कारण यह है कि इससे शुक्रदेव को प्रसन्न किया जाता है। शुक्रदेव, प्रेम, सौंदर्य और धन के देवता माने जाते हैं, और उनका आशीर्वाद जीवन में सुख और समृद्धि लाने में सहायक होता है।
शुद्धता का प्रतीक
खील-बताशे को शुद्ध माना जाता है, और यही कारण है कि इन्हें देवी-देवताओं को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है। शुद्धता के इस प्रतीक से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने की आशा की जाती है।
स्वागत की तैयारी
दिवाली के दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर को सजाना महत्वपूर्ण है। चौखट पर तोरण और फूल लगाना, रंगोली बनाना और कूड़ा बाहर फेंकना चाहिए। यह सब मां लक्ष्मी के स्वागत में किसी कमी को नहीं छोड़ता।
घर की सफाई
घर को स्वच्छ रखना भी आवश्यक है, ताकि मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करें। घर में किसी भी सामान का बिखराव नहीं होना चाहिए, जिससे घर की सकारात्मकता बनी रहे।
दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश को खील-बताशे का भोग अर्पित करना एक पुरानी परंपरा है, जो न केवल धार्मिक मान्यता से जुड़ी है, बल्कि इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस दिवाली, इन परंपराओं का पालन करके आप मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।